
रामगढ़( बलिया) । गंगा नदी के पवित्र रामगढ़ हुकुमछपरा गंगापुर घाट पर आयोजित महर्षि भृगु वैदिक गुरुकुलम् के तत्वाधान में आयोजित सात दिवसीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की पूर्णाहुति बुधवार को विशाल भंडारे के साथ हुई। इस महायज्ञ में भाग लेकर श्रद्धालुओं ने अपने जीवन को प्रकाशमय और पुण्य से परिपूर्ण बनाने की कामना की। इससे पहले आचार्य यज्ञाधीश पं. मोहित पाठक जी ने लोक कल्याणार्थ संकल्प कर पूर्णाहुति प्रदान किया तो पूरा इलाका जय जय कारे से झूम उठा। आचार्य जी ने शास्त्रों में वर्णित गंगा सेवा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए स्वच्छ एवं मातृत्व भाव रखने के लिए श्रद्धालुओं को प्रेरित किया। कहा कि धार्मिक आयोजनों से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। हमको अपने धर्मार्थ के लिए जो करना होगा स्वीकार्य है। धर्मार्थ के कार्यों में अक्सर संघर्ष का सामना करना पड़ता है, लेकिन आपको सकारात्मक रहने की कोशिश करनी चाहिए।सकारात्मक दृष्टिकोण आपको संघर्षों से निपटने में मदद करेगा और आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रेरित करेगा।

वहीं, गुरुकुलम् के बटुक एवं आचार्यों ने क्षेत्र के लिए मंगल का कामना किया। महाप्रसाद ग्रहण करने के लिए श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक भीड़ रही। भगवान के अनन्य विवाहों की कथा को श्रवण वर्णन करते हुए स्यामंतक मणि की कथा तथा भगवान श्री कृष्ण के अन्य लीलाओं के साथ मुख्य रूप से कृष्ण और सुदामा के चरित्र को सुनाकर भक्तों को भाव विह्वल कर दिया। इसी के साथ कथा का समापन और शुक देव पूजन संपन्न हुआ। आचार्य शौनक द्विवेदी, निहाल मिश्र, राजकुमार उपाध्याय, संदीप सिंह, उमाशंकर पांडेय, कौशल किशोर पाण्डेय, धीरज सिंह, आत्मानंद सिंह, सोनू सिंह, दीपक, धीरज, मनु आदि भक्त जन उपस्थित रहें।
मन, बुद्धि और चित को निर्मल कर देता हैं प्रसाद
यज्ञाधीश पं. मोहित पाठक जी ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन, जिसे हम सभी प्रसाद कहते हैं। प्रसाद हर धार्मिक आयोजन या अनुष्ठान का तत्वसार होता है, जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का अपमान होता है।
यज्ञशाला परिक्रमा के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
बुधवार की सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ यज्ञशाला का परिक्रमा के लिए उमड़ी रही। भक्तजन, महायज्ञ को संपन्न कराने में शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक रूप से मदद कर प्रसन्न दिख रहे थे। श्रद्धालुओं का कहना था कि महायज्ञ का आयोजन हम सभी का सौभाग्य है। वैदिक मंत्रोच्चार और प्रतिदिन शाम को होने वाली काशी जैसी गंगा आरती ने पूरे वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया।